
दिवाली के पटाखे, आवाज से ज्याबदा रंगभरी आतिशबाजी वाले हो गए। बेफ्रिकी की जगह जिम्मेदारी ने ले ली, सभ्यता को बहाव देने वाली नदियों का पानी सूख गया। इसके बावजूद कुछ चीजें नहीं बदली हैं.....घर छोडते वक्तमां की आंख में आंसू, बचपन के दोस्तों का भरोसा, न बदला है, न बदलेगा। बच्चों की मासूमियत, बारिश के बाद हरियाली का आना पहले जैसा ही है।
घर की बनी स्वेटर की जगह बाज़ार के कपडों ने ले ली है, पर उम्र बढने के बावजूद ठंड में उसे न पहनने पर बड़ों से पड़ने वाली डांट में कोई बदलाव नहीं है। बोरोलीन बदल गई, मैं भी बदल गया, पर मां का प्या़र वैसा ही है।
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