Monday, June 15, 2009

चांद के बहाने


कहानी फि‍ल्‍मी है, शादीशुदा पॉलिटिशियन को खूबसूरत वकील से प्‍यार हो जाता है। बीबी छोड़ी नहीं जाती, ऐसे में वह धर्म बदलता है और शादी के बाद निकाह करता है। निकाह के 40 दिन बाद हरियाणा से अचानक गायब हुए पॉलिटिशियन, लंदन से एसएमएस के जरिए नए जमाने का तकनीकी तलाक दे देते हैं। बेवफाई झेल रहीं मोहतरमा, उन पर रेप, धोखाधड़ी और भावनाओं को आहत करने का मामला पुलिस में दर्ज करा देती है। हां आप सहीं समझ रहे हैं...... ये चांद मोहम्‍मद (चंद्र मोहन ) और फ़ि‍जा (अनुराधा बाली) की कहानी है।
कहानी में यू-टर्न आया हैं, 14 जून को चांद फ़ि‍जा के घर में दिखाई दिया। अब दोनों फि‍र प्‍यार के रास्‍ते पर चलने को तैयार दिखते हैं।हुस्‍न और पैसे के इस गठजोड़ में कई लोगों को चांद का रसूखदार परिवार विलेन लगता है। इस पूरे प्रकरण में चांद ने पब्लिसिटी और खूबसूरत माशूक हासिल की है जबकि बीबी सीमा विश्‍नोई व बच्‍चों सहित पूरे परिवार का भरोसा खोया है। उन्‍हें हरियाणा के उपमुख्‍यमंत्री का पद भी गंवाना पड़ा है। बहरहाल हमें चांद के बहाने कुछ सवाल खुद से पूछने चाहिए। यह जरूरी नहीं कि हर किसी का जवाब एक जैसा हो।

- क्‍या प्‍यार का सार्वजनिक प्रदर्शन जरूरी है।
- आपको सस्‍ती लोकप्रियता चाहिए या जीवन में शांति और खुशी।
- शादी के लिए पैसे, खूबसूरती, ईमानदारी और अच्‍छे इंसान का क्‍या क्रम होना चाहिए।

Friday, June 12, 2009

गौरैया की वापसी


जब हम बच्‍चें थे तो घर के आंगन में एक छोटी सी चिड़िया दाना चुगने आती, अक्सर , घास के तिनके लिए उड़ती-फिरती चिड़िया जैसे घर का हिस्‍सा थी। बड़े उन्‍हें उड़ाते नहीं और हमारी नजर उन पर और उनके घौंसलों पर होती।

मैं
और मेरे भाई ने एक तरकीब लगाकर एक गौरैया ( इंग्लिश में इसे हॉउस बैरो कहते हैं ) पकड़ी थी, फि उसे लाल रंग से रंगकर छोड़ दिया था। मुझे अच्‍छी तरह याद है कि हमारे यहां काम करने वाले राममिलन ने हमें बारी-बारी से उठाकर गौरेया का घौंसला दिखाया था, उसमें काफी छोटे चितकबरे रंग के अंडे थे। उनमें से निकले बच्‍चों को भी बाद में देखा था हमने।

वक्‍त बदला, सीमेंट ने मिट्टी की जगह ले ली, फ्लैट के दौर में आंग
बेमानी हो गए, घरों के करीब पेड़-पौधे बेहद कम हो गए। जिससे गौरैया के घरौंदे सिमटने लगे, ऐसा समय आया कि गौरैया दिखना ही बंद हो गई। शहरों के साथ गांवों में भी वह नहीं दिखाई दी, लेकिन जब ऐसा लगने लगा कि वह बीते दिनों की बात हो गई है तो कई साल बाद एक दिन कॉलेज की एक कैंटीन में अच्छी संख्‍या में नजर आई । स्‍टूडेंट्स के बीच वह भी अपना नाश्‍ता करती और उड़ जाती।

अचानक
ही वह कई जगह दिखने लगी, इंदौर की यूनिवर्सिटी कैंटीन से लेकर दिल्‍ली के जामा मस्जिद के आस-पास....हर कहीं। उसने समय के साथ खुद को बदल लिया था, अब कच्‍चें मकानों की बजाय कटीली झाडि़यां उसका घर है। वह हमारे बीच फि रहने आई है, हमारे परिवार में पुराने सदस्‍य का स्‍वागत है।
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Thursday, June 11, 2009

सिर्फ प्रतिभा से नहीं मिलती सफलता

सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली के गुरू रामाकांत आचरेकर ने एक बार कहा था कि विनोद, सचिन से ज्यादा प्रतिभाशाली है, लेकिन उसमें अनुशासन की कमी है। शराबनोशी और गैरजिम्मेजदार रवैए के कारण कांबली का करियर सचिन की तुलना में काफी छोटा है। सचिन विवादों से हमेशा दूर रहे क्योंकि मैदान के साथ उनकें जीवन में भी अनुशासन रहा।

शोएब अख्तर, शेन वार्न या फिएंडूयू साइमंड किसी भी मैच को पलटने का माद्दा रखते हैं। इसके बावजूद शोएब को टी-20 विश्वकप के पहले ही पाकिस्तान वापस भेज दिया गया, शेन वार्न का वैवाहिक जीवन बिखर गया है और एंडूयू साइमंड का क्रिकेट करियर खत्मे होने की कगार पर है। क्रिकेट के अलावा भी कई उदाहरण हैं।


शास्त्री संगीत का एक बडा नाम है कुमार गंधर्व। मध्‍य प्रदेश में देवास घराने के मुकल शिवपुत्र जो कि स्‍व. कुमार गंर्धव के बेटे हैं, हाल ही में भोपाल के एक मंदिर में भीख मांगते हुए पहचान लिए गए। जिसके बाद उनकी खोज हुई, फिलहाल प्रदेश सरकार ने उन्हेंद ख्‍़याल गायकी के एक संस्‍थान के साथ जोड़ा है। उन्‍हें ख्‍़याल गायकी में महारथ हासिल है, वे फक्‍कड़ और नशे के आदी रहे हैं। उनसे जुड़ा एक वाकया है- अशोक बाजपेयी ने उन्‍हें एक कार्यक्रम पेश करने दिल्ली बुलाया। वे स्टेज पर पहुंचे लेकिन मूड होने के कारण मुकुल बिना गाए वापस स्‍टेज से नीचें गए। इस शो की बाकायदा टिकट बिकी थी, बाजपेयी साहब की किरकिरी हो गई।

सफलता सिर्फ प्रतिभा होने से नहीं मिलती, उसके लिए अनुशासन भी जरूरी है। यह बात हर कहीं लागू होती है चाहे वह खेल का मैदान हो या जि़दंगी का स्‍टेज या फि कोई कॉरपोरेट ऑफि‍स ।
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बस यूं ही

सीधे कानों तक पहुंचती है परिंदों की आवाज़,
मेरे गांव में आवाजें शोर में खोती नहीं हैं।

तुमकों शिद्दत से महसूस किया है,
जैसी ठंडी हवा ने मुझको छुआ है। क्‍यों जाती हो मेरे ख्‍़वाबों में,
जब तुम्हारें भाई ने मना किया है।

मैं बेकाम हूं तो सियासत से बचा हूं,
यहां हर काम में सियासत होती है।
हुनर तो ठीक है...हुस्‍न है...
कौम क्‍या है, किस गुट से ताल्लु है तुम्हारा।

तस्वीर से बुझती नहीं तलब तेरी,
तू रूबरू आए तो करार आए।

कुछ चीजें कभी नहीं बदलती हैं

अकसर हम मजाक में कहते हैं कि कुछ चीजें कभी नहीं बदलती हैं जैसे- बोरोलीन, मां का प्या और मैं। हालांकिहमारे आसपास चीजें तेजी से बदलती हैं। शाहरुख खान की प्यारभरी, सपनों वाली प्रेमकहानी से रियलस्टिक देव-डी का जमाना गया। अब साईकिल टकराने से हीरो-हिरोइन के बीच प्या़र नहीं होता।

दिवाली के पटाखे, आवाज से ज्याबदा रंगभरी आतिशबाजी वाले हो गए। बेफ्रिकी की जगह जिम्मेदारी ने ले ली, सभ्यता को बहाव देने वाली नदियों का पानी सूख गया। इसके बावजूद कुछ चीजें नहीं बदली हैं.....घर छोडते वक्तमां की आंख में आंसू, बचपन के दोस्तों का भरोसा, बदला है, बदलेगा। बच्चों की मासूमियत, बारिश के बाद हरियाली का आना पहले जैसा ही है।

घर की बनी स्वेटर की जगह बाज़ार के कपडों ने ले ली है, पर उम्र बढने के बावजूद ठंड में उसे पहनने पर बड़ों से पड़ने वाली डांट में कोई बदलाव नहीं है। बोरोलीन बदल गई, मैं भी बदल गया, पर मां का प्या़र वैसा ही है।

तुम्हारी बहुत याद आती है।।

हर बात के बाद कुछ सवाल सा, जैसे- मैं वहां जा रिया था, क्या भिया वो काला अपन से तेज चल रिया था, क्या आप शहर में नए हैं तो समझने में देर लगेगी, ये सवाल पक्‍के इंदौरी की आदत का हिस्सा हैं और कुछ नहीं। इंदौरी का वज़ूद इंदौर से है, जिसके एक हिस्से में नौ लाख पेड़ होने से उसका नाम नौलखा पडा। अब इस शहर में सूखे जैसे हालात हैं। आइए शहर को करीब से देखते हैं।

यहां हर काम आराम से होता है, देर से उठना, देर से दुकानों का खुलना। सुबह का पसंदीदा नाश्‍ता पोहा-जलेबी है, पोहा तो आपको यहां 24 घंटे मिल जाएगा। इंदौरियों को खाने-पीने और फिल्‍में देखने का बड़ा शौक है। दाल-बाटी, कचौरी से लेकर बटर चिकन चाव से निपटाया जाते हैं। पीने में भी अच्छें हैं इंदौरी, इसलिए टैंकर भी निकनेम होता है यहां। इस शहर में टॉकिज में विशेष टिप्‍पणी करने में बालकनी वाले भी पीछे नहीं रहते।

सहीं उच्चारण का प्रशिक्षण देने वाले जितेंद्र रामप्रकाश ने यहां की हिंदी को बोलने के तरीके की तारीफ में कहाकि मात्राओं में इंदौरियों के हाथ तंग होता हैं। उन्हों नें उदाहरण देते हुए कहा था- मेच में केफ ने केच कर लिया।

यह शहर गर्लफ्रेंड की तरह है इससे प्यार हो जाता है, साथ छोडने का मन नहीं करता। दूर रहने पर याद आतीहै, गले लगाने का मन करता है इसे। कभी रूठता है, मस्ती करता है, कई बार दिल भी तोड़ देता है, फि भी इस पर प्यार आता है। इसकी गोद में सिर रखकर सोने से नींद सुकूनभरी आती है, इंदौर तुम्हारी बहुत याद आती है। ‍‍