सीधे कानों तक पहुंचती है परिंदों की आवाज़,
मेरे गांव में आवाजें शोर में खोती नहीं हैं।
तुमकों शिद्दत से महसूस किया है,
जैसी ठंडी हवा ने मुझको छुआ है। क्यों आ जाती हो मेरे ख़्वाबों में,
जब तुम्हारें भाई ने मना किया है।
मैं बेकाम हूं तो सियासत से बचा हूं,
यहां हर काम में सियासत होती है।
हुनर तो ठीक है...हुस्न है...
कौम क्या है, किस गुट से ताल्लुक है तुम्हारा।
तस्वीर से बुझती नहीं तलब तेरी,
तू रूबरू आए तो करार आए।
Thursday, June 11, 2009
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