हर बात के बाद कुछ सवाल सा, जैसे- मैं वहां जा रिया था, क्या । भिया वो काला अपन से तेज चल रिया था, क्या ।आप शहर में नए हैं तो समझने में देर लगेगी, ये सवाल पक्के इंदौरी की आदत का हिस्सा हैं और कुछ नहीं। इंदौरी का वज़ूद इंदौर से है, जिसके एक हिस्से में नौ लाख पेड़ होने से उसका नाम नौलखा पडा। अब इस शहर में सूखे जैसे हालात हैं। आइए शहर को करीब से देखते हैं।
यहां हर काम आराम से होता है, देर से उठना, देर से दुकानों का खुलना। सुबह का पसंदीदा नाश्ता पोहा-जलेबी है, पोहा तो आपको यहां 24 घंटे मिल जाएगा। इंदौरियों को खाने-पीने और फिल्में देखने का बड़ा शौक है। दाल-बाटी, कचौरी से लेकर बटर चिकन चाव से निपटाया जाते हैं। पीने में भी अच्छें हैं इंदौरी, इसलिए टैंकर भी निकनेम होता है यहां। इस शहर में टॉकिज में विशेष टिप्पणी करने में बालकनी वाले भी पीछे नहीं रहते।
सहीं उच्चारण का प्रशिक्षण देने वाले जितेंद्र रामप्रकाश ने यहां की हिंदी को बोलने के तरीके की तारीफ में कहाकि मात्राओं में इंदौरियों के हाथ तंग होता हैं। उन्हों नें उदाहरण देते हुए कहा था- मेच में केफ ने केच कर लिया।
यह शहर गर्लफ्रेंड की तरह है । इससे प्यार हो जाता है, साथ छोडने का मन नहीं करता। दूर रहने पर याद आतीहै, गले लगाने का मन करता है इसे। कभी रूठता है, मस्ती करता है, कई बार दिल भी तोड़ देता है, फिर भी इस पर प्यार आता है। इसकी गोद में सिर रखकर सोने से नींद सुकूनभरी आती है, इंदौर तुम्हारी बहुत याद आती है।
Thursday, June 11, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
kah gaye kah gaye.....
Post a Comment