
सेव टाइगर एड कम्पेन शुरू हुई तो कहा गया कि सिर्फ 1411 बाघ ही देश में बचे हैं, उन्हें बचाना चाहिए। उसके बाद भी हर हफ्ते बाघों के मारे जाने की ख़बरें आती रहीं। बाघों की अहमियत समझने वाला हर कोई चिंता में दिखा ।बाघ किस तेजी से खत्म हुए ये समझने के लिए पन्ना और सरिस्का टाइगर रिजर्व में खत्म हुए बाघ सबसे बड़ा उदाहरण है। दोनों जगह अब दूसरी जगहों से बाघ लाए गए हैं।
सात साल पहले पन्ना में मैंने बाघों के पूरे परिवार के साथ देखा था, पर अब इस पार्क में बाघ देखना बड़ा ही मुश्किल काम है क्यों कि खजुराहों के पास इस बड़े नेशनल पार्क में केवल 2 ही बाघ है। पार्क के अंदर या उससे लगे हुए कुछ छोटे-छोटे गांव है, जिसमें रहने वाले आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है। पहले केंद्र सरकार मानती रही कि ये लोग जंगल का हिस्सा है और इनसे जंगली जानवरों को कोई खतरा नहीं है। इन आदिवासियों के बच्चों को पढ़ाने के लिए भी सरकार ने विशेष व्यवस्था की थी। पर अब सरकार समझ गई है कि शिकारी इनका इस्तेमाल कर रहे है , रुपए का लालच बाघों पर भारी पड़ रहा है। पार्क के अंदर से में विस्थापित हो रहे हर गांव वालों को 10 लाख रुपए कामुआवजा दिया जा रहा है।
पन्ना के जंगल में जब रात को झींगुर अपने विशाल बैंड से खामोशी को गहरा करने वाला संगीत बजाते है तो पेट्रोलिंग करती सरकारी गाडि़यां उनमें ख़लल पैदा करती है । बाघ के गले में रेडियों कॉलर लगाया गया है, जिससे उसकी लोकेशन का पता लगाया जाता है। इसके अलावा शिकारियों की उन पर नजर तो नहीं है, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। इन सबसे जंगल में बाघ की हालत चिडि़याघर में रहने वाले बाघ से बस कुछ बेहतर है। वन विभाग के अमले को भी पता है कि बाघ मारा गया तो उनकी नौकरी पर बन आएगी।
रात के समय पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर एक गांव, जिसका नाम ताल गांव है, में मीटिंग चल रही है। यह गांव विस्थापित किए जाने वाले गांवों की सूची में से एक है। वनविभाग के अधिकारी से एक गांववाले का कहना था कि हम मदद नहीं करते तो जंगल नहीं बचता , इस पर अधिकारी ने अपनी टिप्पणी दी कि आप मदद करते तो बाघ खत्म नहीं होते। सरकार भी मान गई है कि इंसान और बाघ दोस्त नहीं हो सकते। मरे हुए बाघ पर शान से बंदूक लेकर खड़े राजाओं की पुरानी तस्वीर हो या जंगल में पीने के पानी में जहर मिलाने की घटना...ये साबित करते है कि इंसान और बाघ दोस्त नहीं हो सकते।
2 comments:
इन्सान और बाघ दोस्त नहीं हो सकते ये बात उतनी ही सच है जीतनी की इन्सान ही बाघों का दोस्त बन कर उन्हें बचा सकता है, इतिहास गवाह है, की बाघों की संख्या उनके लगातार शिकार की वजह से संकट में आई लेकिन इतिहास ही हमें बताता है की यदि इन्सान ने उन्हें बचने की पहल न की होती तो जितने बाघ आज है वो भी ना होते. आप को क्या लगता है, हमारे फोरेस्ट guards को शिकारियों के बारे में नहीं पता होता, ये मिलीभगत होती है, जिसमे सबका हिस्सा होता है, जबतक ये भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा तबतक बाघ खतरे में ही रहेंगे.
हां आप का कहना सहीं है पर बात जंगल और सरकारी नीतियों की है। वदीवाले, शिकारी और आदिवासी सभी जिम्मेदार हैं। वनविभाग के लोग मुस्तैदी दिखाते तो बाघ इतनी तेजी से कम नहीं होते।
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